Home International Political आरक्षण, कोटा के भीतर कोटा के पीछे की नियति- संदर्भ सुप्रीमकोर्ट का फैसला
Political - August 28, 2020

आरक्षण, कोटा के भीतर कोटा के पीछे की नियति- संदर्भ सुप्रीमकोर्ट का फैसला

सुप्रीकोर्ट के पांच जजों की बेंच ने एससी-एसटी कोटे को बांटने का अधिकार राज्यों को सौंपा, यह कहकर की इससे इन समुदायों के वंचित लोगों को फायदा होगा, जो आरक्षण का उद्देश्य है। केंद्र सरकार पहले ही ओबीसी के आरक्षण को बांटने के लिए रोहिणी कमीशन बना चुकी है।

ओबीसी और एससी के लिए निर्धारित आरक्षण कोटा के भीतर कोटा तय करने का तर्क केंद्र सरकार और सुप्रीमकोर्ट द्वारा ऐसे प्रस्तुत किया जा रहा है, जैसे उन्हें ओबीसी और दलितों के वंचित लोगों की गंभीर चिंता है और वे उन्हें न्याय दिलाना चाहते हैं। इसी चिंता के नाम पर सुप्रीमकोर्ट ने ओबीसी में क्रीमलेयर लागू किया था।

जबकि सच्चाई यह है कि इसका मूल उद्देश्य दलितों , आदिवासियोंऔर ओबीसी को आरक्षण के नाम पर टुकड़े-टुकड़े में बांटकर और आपस में लड़ा कर देश में अपरकास्ट के वर्चस्व के खिलाफ बहुजन एकता की संभावना को नेस्तनाबूद कर देना है।

यदि वंचित समुदायों की केंद्र सरकार और सुप्रीमकोर्ट को इतनी ही चिंता है, तो निम्न कार्य क्यों नहीं कर देते-

1- जाति जनगणना, जिससे ठीक-ठीक पता चल सके कि किस जाति के हाथ में देश के संसाधनों, संपदा और नौकरियों का कितना हिस्सा है।

2- आबादी के अनुपात में ओबीसी को आरक्षण और संसाधनों-संपत्ति का बंटवारा

3- सुप्रीकोर्ट क्यों नहीं, कभी यह कहता कि सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक तौर पर वंचित समुदायों का प्रतिनिधित्व नहीं है, उनका आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिए यानि न्यायपालिका में आरक्षण तुरंत लागू होना चाहिए और कुछ जातियों के वर्चस्व को तोड़ा जाना चाहिए।

4- सारे आंकड़े बताते हैं कि अधिकांश सरकारी नौकरियों और शैक्षिक क्षेत्रों में ओबीसी की हिस्सेदारी करीब 13 प्रतिशत या इससे कम है,जबकि उनके लिए आरक्षण 27 प्रतिशत है यानि ओबीसी के तय हकों पर अपरकास्ट कब्जा जमा रखा है, केंद्र सरकार या सुप्रीमकोर्ट ने इस पर कोई चिंता क्यों नहीं जाहिर की और क्यों सरकारों को यह निर्देश नहीं दिया कि ओबीसी का कोटा पूरी तरह भरा जाए।

5- अधिकतम 21 प्रतिशत अपरकास्ट का देश के संसाधनों, संपत्ति और नौकरियों पर औसत तौर सभी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत से अधिक नियंत्रण है, क्यों न उसमें से बंटवारा करके वंचित समुदायों ( ओबीसी-एससी-एसटी) को सौंपा जाए।

6- अपरकास्ट में एक आर्थिक तौर वंचित हिस्सा है, जिसके हकों पर अपरकास्ट के ऊपरी एक हिस्से ने कब्जा कर रखा है, इसकी चिंता क्यों सुप्रीमकोर्ट और सरकारों को नहीं सताती।

हां यह जरूर हुआ कि अपरकास्ट के ताकतवर वर्गों के हिस्सें में कोेई कटौती किए बिना गरीबी के नाम पर उनके तथाकथित गरीब हिस्से को 10 प्रतिशत आरक्षण जरूर दे दिया गया। किससे हिस्से में से दिया गया।

जरूरी काम यह है कि केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और सुप्रीकोर्ट आपस में मिलकर जाति जनगणना के पक्ष फैसल लें, ओबीसी के लिए उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण की घोषणा की जाए , न्यायपालिका और अन्य क्षेत्रों में ( जहां आरक्षण नहीं है) तुरंत आरक्षण लागू किया जाए।

सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के साथ ही आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा पहले ही खत्म हो चुकी है।

आबादी के अनुपात में आरक्षण, क्रीमीलेयर की समाप्ति, पदोन्नति में ओबीसी के लिए आरक्षण और आरक्षण का पूरा कोटा भरने के साथ यह भी तय किया जा सकता है और तय किया जाना चाहिए कि ओबीसी और एससी-एसटी को सभी वंचित समुदायों को उनका वाजिब हक मिले।

आबादी के अनुपात में आरक्षण, क्रीमीलेयर की समाप्ति, पदोन्नति में ओबीसी के लिए आरक्षण और आरक्षण का पूरा कोटा भरने के साथ यह भी तय किया जा सकता है और तय किया जाना चाहिए कि ओबीसी और एससी-एसटी को सभी वंचित समुदायों को उनका वाजिब हक मिले।

लेकिन फिलहाल कोटा के भीतर कोटा का मुख्य लक्ष्य है, बहुजनों को टुकड़े में बांटना और देश पर अपरकास्ट के वर्चस्व को स्थायी और चुनौती विहीन बनाना है।

यह लेख वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ रामू के निजी विचार है

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