घर सामाजिक संस्कृती हनी बाबूंच्या अटकेबाबत विद्यार्थी संघटना आणि प्राध्यापकांमध्ये संताप.

हनी बाबूंच्या अटकेबाबत विद्यार्थी संघटना आणि प्राध्यापकांमध्ये संताप.

समाजिक न्याय के लिए आवाज उठाने वाले हनी बाबू गिरफ्तार ।

आजपासून 13 उच्च शैक्षणिक संस्थांमधील लोकशाहीला वर्षभरापूर्वी उच्चवर्णीय वर्चस्वाची चाहूल लागली., विविधता समता और सामाजिक न्याय के लिए आवाज उठाना एक अदम्य साहस भरा काम था। दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर हनी बाबू उसी साहस का नाम हैं।जब ओबीसी के मुद्दे पर किसी का मुंह नहीं खुलता था तब हनी बाबू को हम लोग जेएनयू बुलाते थे और वो बड़ी मुखरता से हर मंच पर इन अनछुए सवालों पर बोलते थे।

हनी बाबू जैसे लोगों ने अपने संघर्षों से हमारे जैसे अगली पीढ़ी के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों का दरवाजा खुलवाया और हम दिल्ली,जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों को पहली बार देख पाए।ब्राह्मणवादी नाजियों की सरकार ने हनी बाबू को गिरफ्तार कर लिया है।मगर ओबीसी बैठ कर पोल्ट्री के मुर्गे की तरह अपनी बारी का इन्तजार कर रहा है।

अतीत में इसी तरह की गिरफ्तारी और सत्ता के क्रूर आतंक के मंजर को इटली,जर्मनी की जनता, प्रोफ़ेसर, पत्रकार और कलाकारों ने देखा-भोगा था। आज भारत में भी उसी दौर को दोहराया जा रहा है।

भीमा कोरेगांव की घटना तो महज एक बहाना है। बल्कि ये ब्राह्मणवादी वर्चस्व को चुनौती देने के कारण हनी बाबू को गिरफ्तार किए हैं।दरअसल ये हर उस शख्स की जुबान खामोश करना चाहते हैं जो इनके मनुवादी विचारों के खिलाफ खड़ा है। पहले N.Sai Baba, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, शर्जिल इमाम, मीरान हैदर, देवंगना, नताशा नारवल आदि और अब हनी बाबू।

दुर्भाग्य ये है कुंद चेतना के अंधकार मे डूबकर धर्म की चासनी चाटता ओबीसी जैसा विशाल श्रमजीवी वर्ग मदहोश है। इसका बुद्धिजीवी बोलने और लिखने के बजाए बेबस और लाचार नजर आ रहा है। सब कुछ नियति मान कर बैठ गया है,

ओबीसी का राजनीतिक वर्ग तो आत्म-मुग्धता के अथाह सागर में गोते लगा रहा है और राजगद्दी पर बैठने के लिए सपने देख रहा है।

यह लेख युवा नेता डॉ. मुलायम सिंह यादव के निजी विचार है ।

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