वास्तविक “महिला दिवस शिक्षक दिवस” की शुभकामनाएं
आज सावित्रीबाई फुले का जन्मदिन है, भारत को सभ्य बनाने वाली एक महान महिला को याद करने का दिन है। सावित्रीबाई फुले वो महिला हैं जिन्होंने ब्राह्मणों के द्वारा कीचड़ और गंदगी फेंके जाने के बावजूद ओबीसी और दलित लड़कियों के लिए स्कूल खोला।
सावित्रीबाई वो महिला हैं जो फूल और सब्जियां बेचकर, गद्दे, रजाई और कपड़े सिलकर अपना परिवार चलातीं थीं। सावित्रीबाई जब ओबीसी बहुजनों की बेटियों को पढ़ाने जाती थीं तब दो साड़ियाँ लेकर निकलती थीं। रास्ते मे ब्राह्मण उनपर कीचड़, गोबर आदि फेंकते थे।
सावित्रीबाई स्कूल पहुंचकर साड़ी बदलकर बच्चों को पढ़ाती थीं और फिर लौटने के लिए गंदी साड़ी पहन लेती थीं। ये उनका संघर्ष था शूद्रातिशूद्रों के कल्याण के लिए।
सावित्रीबाई फुले वो महिला हैं जिन्होंने ओबीसी और बहुजनों गरीबों की सेवा करते हुए अपनी जान दे दी। जब ओबीसी और बहुजनों की बस्तियों में प्लेग की बीमारी फैली तब सावित्रीबाई फुले ने रात दिन एक करके बीमारों की देखभाल की। इसी बीमारी के संक्रमण से उनकी मृत्यु हुई।
आप सावित्रीबाई, ज्योतिबा, बिरसा मुंडा, डॉ. अंबेडकर, पेरियार, अछूतानन्द, नारायण गुरु, ललई सिंह यादव जैसे अनेकों अनेक ओबीसी दलित आदिवासी क्रांतिकारियों को देखिए, वे भारत की 85 प्रतिशत जनता को 15 प्रतिशत लोगों के शोषण और दमन से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
अक्सर ही इस देश में यह होता आया है कि असली नायक नायिकाओं का सम्मान तो छोड़िये उन्हें पहचान भी नही मिलती। ये दलन और दमन की सनातन संस्कृति है जिसमे एक अछूत एकलव्य को सिर्फ इसलिए अपंग बनाया जाता है कि वो भविष्य में सछूत आर्यों के झूठे बड़प्पन के लिए खतरा न बन जाए।
बाद में इन्ही द्रोण के मानस पुत्र अपंग या विकलांग को दिव्यांग बनाकर अपंग होने के दंश को उसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि सहित अदृश्य बना देते है।
ये एक सिलसिलेवार और बहुत सोच समझकर की जाने वाली कारस्तानी है। इसका एकमात्र लक्ष्य कुछ ख़ास तबकों का महिमामण्डन करते रहना है और शेष गरीब और बहुजन समाज को उनकी समस्त उपलब्धियों के साथ भुलाये रखना है।
जीतनराम माझी अभी ताजा उदाहरण हैं, उन्हें न सम्मान मिलेगा न सहयोग लेकिन उन्होंने जितने लोगों की जिंदगी बदल दी है और जिस तरह से लोगों को प्रेरित किया है वो अतुलनीय है।
इसी तरह इतिहास में ज्योतिबा फुले ने शिक्षा सहित इस देश के धार्मिक एतिहासिक विमर्श की दिशा में जो कुछ किया है वो इतना बड़ा है कि उसके बिना हम आधुनिक भारत की कल्पना ही नही कर सकते। इसके बावजूद ज्योतिबा, सावित्रीबाई, पेरियार, भदन्त बोधानन्द, स्वामी अछूतानन्द और इनके जैसे न जाने कितनों को प्रयासपूर्वक अदृश्य बनाया गया है।
इन लोगों के बारे में हमारे बच्चे क्या और कितना जानते है? हमारी पाठ्य पुस्तकों सहित सामाजिक सांस्कृतिक विमर्श में इनका नाम कितनी बार आता है?
वहीं हवा हवाई बातें करने वाले विवेकानन्द, रामकृष्ण, अरविन्द, रजनीश, आसाराम और इन जैसे सैकड़ों को सर पर उठाकर घुमाया जाता है। उनकी सारी मूर्खतापूर्ण बातों को तुरन्त सम्मान और पहचान मिलती है। ये सब लोग इस समाज को जिस दिशा में ले जाते हैं वो एकदम गलत दिशा है।
थोथे अध्यात्म आत्मा परमात्मा और भाग्यवाद में जकड़कर ये विकास की नए युग की प्रेरणाओं को खत्म कर देते हैं। हर मोड़ पर जबकि इस देश की सनातन मूर्खता को पश्चिम से चुनौती मिलती है तब तब ये धर्म के ठेकेदार उठ खड़े होते हैं और असली मुद्दों को ओझल कर देते हैं।
लेकिन दुर्भाग्य ये है कि भगवान रजनीश, जग्गी वासुदेव और आसाराम जैसे इन क्रांतिविरोधी मदारियों को सदियों तक पूजा जाता है।
लेकिन बहुत गौर से देखिये इस देश को या समाज को बनाने का जो काम बुद्ध, महावीर, वसुबन्धु, नागार्जुन, महावीर, गोरख और बाद में कबीर, रैदास, नानक, नामदेव ने किया है वैसे उदाहरण दुर्लभ हैं।
इन्ही की श्रृंखला में अन्य आधुनिक सामाजिक राजनीतिक विचारक भी रहे हैं जो आधुनिक भारत के सच्चे निर्माता है। पेरियार अम्बेडकर ज्योतिबा और सावित्रीबाई ऐसे नाम हैं जो इतिहास का सीना चीरकर बार बार निकलते है।
उम्मीद करें कि और कोई नही तो कम से कम भारत की महिलाएं, गरीब, वंचित, दलित और आदिवासी ही अपनी शिक्षा की देवी को पहचान सकेंगे। परम्परागत विचारकों और धर्मगुरुओं सहित तथाकथित समाज सुधारकों ने भी गरीबो और स्त्रीयों की शिक्षा के लिए कुछ नही किया है।
इन वेदांती धूर्तों का एक ही काम है ये सब व्यर्थ की बातों और ब्रह्मलोक सहित स्वर्ग नर्क की बकवास और आजकल न जाने किन किन कथाओं और यज्ञों में पूरे देश को उलझाये रखते हैं।
भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए सावित्रीबाई फुले के संघर्ष को भुलाया नही जा सकता। भारत के बहुजनों के लिए शिक्षक दिवस आज है।
(ये शब्द संजय श्रमण के है अब आप नेशनल इंडिया न्यूज़ के साथ फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब पर जुड़ सकते हैं.)
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