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Social - State - January 15, 2018

चीफ जस्टिस पर आरोपों के बाद, जस्टिस लोया और कर्णन के केस हुए गर्म

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के अधिकारों के मामलों में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज अंबेडकरी जस्टिस सीएस कर्नन का विवाद पूरे देश में चर्चा का विषय बना रहा। यह वहीं जस्टिस कर्नन हैं जिन्होंने अदालतों में काम करने वाले जजों के भ्रष्टाचार की लिखित शिकायत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी थी। लेकिन प्राइम मिनिस्टर ने किसी किसी भी प्रकार के आयोग का गठन ना करके शिकायत पत्र सीधे सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को भेज दिया। फिर क्या था चीफ जस्टिस की सात जजों की बेंच ने जस्टिस कर्नन को अवमानना का दोषी करार देते हुए 6 महीने की जेल भेज दिया।

अभी कुछ ही दिन पहले जस्टिस कर्नन सजा पूरी काटकर जेल से बाहर आए हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जजों का विवाद जनता और मीडिया के बीच आना यह शायद नियती का एक खेल कहना होगा, जहां भारत के चीफजस्टिस दीपक मिश्रा पर ऐसे गंभीर आरोप लगाए गए।

अब सवाल यह है कि सर जस्टिस दीपक मिश्रा इन दोषी न्यायधीशों को कितने महीने की सजा सुनाते हैं ? या यह चार सीनियर जज चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को क्या सजा सुनाते हैं ? क्योंकि यहां तो अब कोई अंबेडकरी या बहुजन समाज का न्यायधीश है ही नहीं।

सोहराबुद्दीन शेख के एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे सीबीआई जज बीएच लोया की संदिग्ध मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट के भीतर आज बड़ी हलचल है। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका पर जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच में उसकी सुनवाई चल रही है। इस केस में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी आरोपी है।

सीबीआई के जस्टिस लोया शायद अमित शाह को सजा सुनाने वाले थे इसलिए जस्टिस लोया की नागपुर में हत्या की गई। इस तरह का गंभीर आरोप संघ और अमित शाह पर है। जस्टिस लोया की बहन ने एक पत्रकार को यह बात कही थी जिसने बाद में पूरे मिडिया को उस खबर से रुबरु कराया था।

यह खबर सामने आते ही बीजेपी सत्ता दल में भुचाल सा आ गया। जस्टिस कर्नन के प्रकरण में मौन रहनेवाली सत्तारुढ बीजेपी आज किस ओर करवट लेगी यह तो भविष्य ही बताएगा। वैसे कांग्रेस का पूर्व इतिहास भी इसी तरह के हत्या प्रकरण में कुछ कम नहीं है, और दोषियों को क्लिन चिट देने में भी।

हमारे देश में न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका मे जो भ्रष्टाचार है उसके पीछे कहीं न कहीं ब्राह्मणवाद की हीन मानसिकता ही दिखाई देती है। कहा जाता है कि, हमारे न्यायपालिका में 600 मे सें 572 जज ब्राह्मण जाति के है। वही इस कार्यपालिका में भी 3600 आईएएस अधिकारीओं में से 2950 ब्राह्मण जाती के है। हमारे देश का मंत्रीमंडल भी इससे अछुता नही है। फिर भी बहुजन समाज के जाती आरक्षण का विरोध होता है। लेकिन यहां सबसे महत्वपूर्ण विंदु यही है कि जब सुप्रीम कोर्ट के चार जज आरोप लगाते हैं तो वो सवाल बन जाते हैं और जब अंबेडकरी जस्टिस कर्णन बोलते हैं तो उन्हें कोर्ट की अवमानना का दोष मानते हुए जेल भेज दिया जाता है और उनकी आवाज खामोश कर दी जाती है?

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