भगाना कांड: पीड़ित बहुजनों के हाथ में थमी है आज भी इंसाफ की तख्ती, जानिए क्या है भागाना कांड?
By- Kanaklata Yadav ~
भगाना कांड को बहुत से लोग भूल गए होंगे। आज जब हम मंडी हाउस पर प्रोटेस्ट मार्च कोआर्डिनेट कर रहे थे तो अचानक मेरी नज़र तीन व्यक्तियों के ऊपर पड़ी जो चुपचाप भगाना कांड सँघर्ष समिति का बैनर लेकर खड़े थे और उसमें 13 पॉइंट रोस्टर का विरोध लिखा हुआ है, ये देख कर मुझे क्या महसूस हुआ उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं है।
भगाना के SC/ST के साथ जितना अत्याचार हुआ और 8 सालों से वो अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। आज सभी अत्याचारों के बावजूद उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिये वो बैनर हाथ में पकड़ रखा था। जब मैंने बातचीत की पहल की और सतीश काजला जी ने मुझे पहचान भी लिया, फिर मैंने उन लोगों के सामने प्रस्ताव रखा कि बापसा के बैनर के साथ-साथ हम चल सकते हैं और हम लोगों की लड़ाई एक ही है। साथ चलते हुए बहुत सी बात हुई जिसमें उन्होंने बताया कि कुछ दिन बाद फिर केस की सुनवाई है।
जो लोग नहीं जानते हैं कि भगाना कांड क्या है उन्हें बता दें की भगाना कांड 2012 में घटित हरियाणा की घटना है, जिसमें उच्च जाति (जाट) द्वारा बहुजनों के ऊपर हुई हिंसा, घर फूंक दिया जाना और तमाम प्रकार के वॉइलेंस के बाद करीब 200 बहुजन परिवारों को मजबूरन भगाना छोड़ देना पड़ा और हद तो तब हो गयी जब 2014 में बहुजन नाबालिग लड़कियों का अपहरण करके सामूहिक बलात्कार किया गया। ये सारे बहुजन परिवार करीब 7-8 साल से जंतर-मंतर और हरियाणा में प्रोटेस्ट कर रहे हैं लेकिन अभी तक इनके साथ न्याय नहीं हुआ है।
कुछ लोगों को लगता है कि जाति खत्म हो गयी है और सबलोग एक हो गया है, और आर्थिक आधार पर आरक्षण दे देना चाहिए तो उन लोगों को मैं बोलूंगी की एक बार भगाना कांड के बारे में जरूर पढ़ें।
जबरन विस्थापन, जातीय हिंसा, जातिगत भेदभाव, लैंगिक शोषण, स्टेट सपोर्टेड वॉइलेंस और तमाम प्रकार के मानसिक, शारीरिक, जातिगत शोषण और अत्याचार का भगाना कांड जीत जागता उदाहरण है। कभी सोच के देखिए कि जिन छोटे-छोटे बच्चों का गांव-घर में खेल-पढ़ कर सर्वांगीण विकास और समाजीकरण होना चाहिए वो मासूम बच्चे जंतर-मंतर और हरियाणा सरकार से इंसाफ मांगते हुए, पुलिस से हर पल डरते हुए, बिना किसी निश्चित भविष्य की सोच लिए बड़े हुए होंगे और ये सिलसिला जारी है।
तमाम बहुजन महिलाएं, पुरूष, पति-पत्नी इतने सालों से अपनी निजी जिंदगी, व्यक्तिगत भावनाओं को मार कर कैसे सार्वजनिक स्थानों पर सालों से अपना दिन-रात बिता रहे हैं। महिलाओं और लड़कियों को नहाने, बाथरूम, पीरियड, डिलीवरी और तमाम निजी समस्याओं का वहन करने में कितनी कठिनाईयां आयी होंगी। मैं तो हर एक पल सोच कर सिहर जाती हूं, लेकिन भगाना के सभी बहुजन आंदोलनकारियों की बहादुरी और प्रतिरोध को देख कर मुझमें बहुत हिम्मत और स्टेट से घोर निराशा होती है, उन सभी को मेरा सलाम।
~ कनकलता यादव
(यह लेखक के अपने निजी विचार हैं)
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